4/09/2021

पुस्तकोपहार 2021

 

PUSTAKOUPAHAR

पुस्तकोपहार 2021

PUSTAKOPAHAR 2021

यह कोई संदेह नहीं है कि एक अच्छी पुस्तक हमेशा सौ दोस्तों से बेहतर होती है, पुस्तकें एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक जानकारी का वास्तविक स्रोत होती हैं, इस प्रकार पीढ़ी अंतराल को भरने में हमारे-स्वयं को सक्षम बनाती हैं। ज्ञान वृद्धि के लिए सूचना पारित करना एक महत्वपूर्ण कार्य है।

केविसं. एक संस्था के रूप में मानव के जीवन में पुस्तकों की आवश्यकता को समझता है, लेकिन कुछ समय के लिए सोचें, क्या हर कोई एक पुस्तक खरीदने में सक्षम है ???, इसका उत्तर स्पष्ट रूप से  ‘नही’ है !!!!!! तो इस समस्या को दूर करने के लिए केविसं ‘पुस्तकोपहार’ के रूप में एक अभिनव पहल के साथ आया, जहां छात्रों को पिछले वर्ष उत्तीर्ण सत्र की अपनी किताबें दान करने के लिए प्रेरित किया जाता है।

एक शैक्षणिक वर्ष की शुरुआत से पहले सभी आयु वर्गों के छात्रों द्वारा अपेक्षाकृत नई प्रयोग की जाने वाली पुस्तकों का उपयोग करने के उद्देश्य से ‘पुस्तकोपहार‘ (जूनियर छात्रों को पाठ्यपुस्तकों प्रदान करना) की अवधारणा विकसित की गई है। यह किताबें कम आर्थिक पृष्ठभूमि के बच्चों के लिए विशेष रूप से उपयोगी होती हैं, जो शिक्षा का खर्च उठाने में सक्षम होने के बावजूद शैक्षणिक सत्र का खर्च उठाने में असमर्थ हैं। इस तरह एक कदम के साथ, पाठ्य पुस्तकों को एक नया जीवन देने का अवसर लाता है, छात्रों के बीच संबंध बनाने की भावना पैदा करता है। छात्र जिम्मेदार नैतिक व्यवहार सीखते हैं और प्रदर्शन करते हैं, और पैसे और पर्यावरण को बचाने के लिए एक छात्र के रुप में अपना योगदान करते हैं।

अत: सभी छात्रों से अनुरोध है कि इस कार्यक्रम में आगे आएं एवं अपनी पाठ्यपुस्तक और अन्य संबंधित अध्ययन सामग्री तत्काल जूनियर्स को पुस्तकालय के माध्यम से दें।

It is no doubt that a good book is always better than a hundred of friends. Books are the real source of passing information from one generation to another, thus enabling our-self in filling the generation gap. Information passing is an important act for knowledge growth. KVS as an institution which understands the need of books in the life of a human, but think for a while, is everybody able to purchase a book???, the answer is clearly NOOOO!!!!!!

So to overcome this problem KVS came with an innovative Initiative in the form of ‘Pustakopahar‘, where students are motivated to donate their books to previous year passed students.

The concept of ’Pustakoupahar’ (Passing over of the textbooks to juniors students) has been developed with the objective of using  relatively new-used books by the students of all age groups before the beginning of an academic year. The books are especially useful for children from low economic backgrounds, who in spite of being able to afford education, are unable to afford academic session. Beside a step like this brings an opportunity to let the text books have a new life, inculcate a spirit of bonding between students. The students learn and exhibit responsible moral behavior, and contribute a student’s effort towards saving money and environment.

Therefore, students are requested to come forward and give their textbooks and other related study material to the immediate juniors through Library.

3/20/2021

International Day of Happiness: जानिए क्यों मनाया जाता है इसे

 

International Day of Happiness 2021 : Overview
Name of Day (Event)International Day of Happiness (IDH)
Meaning in Hindiअंतर्राष्ट्रीय खुशी दिवस
Also calledHappiness Day
Official Websitehttps://www.un.org/
Name of OrganizationUnited National (UN)
Observed byAll UN Member States
TypeUnited Nations International Resolution
First International Day of Happiness20th March 2006
Observed onMarch 20
SignificanceAs we face a global crisis together, let’s find positive ways to look after ourselves and each other.
Observed byIndia, All World
International Day of Happiness 2021 DateMarch 20, 2021
International Day of Happiness 2022 DateMarch 20, 2022

20 मार्च को संयुक्त राष्ट्र (United Nations) हर साल अंतरराष्ट्रीय खुशी दिवस (International Day of Happiness) मनाता है. यह लोगों में खास जागरुकता फैलाने का दिन है.

ऐसा लगता है कि दुनिया में हर चीज के लिए एक दिवस रखा गया है. यहां तक कि खुशी  (Happiness) के लिए भी एक ‘इंटरनेशनल डे ऑफ हैप्पीनेस’ या अंतरराष्ट्रीय खुशी दिवस (International day of happiness) रखा गया है. संयुक्त राष्ट्र (United Nations) 20 मार्च को हर साल इंटरनेशनल डे ऑफ हैप्पीनेस मनाता है. साल 2013 में सयुंक्त राष्ट्र ने इसे मानना शुरू किया था.  आइए जानते हैं कि ऐसा क्यों किया जाता है.

क्यों मनाया जाता है ये दिन

संयुक्त राष्ट्र 20 मार्च को ये दिन दुनिया भर के लोगों में खुशी के महत्व के प्रति जागरुकता को बढ़ाने के लिए मनाता है.  संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 12 जुलाई 2012 को इसे मनाने का संकल्प लिया था. संयुक्त राष्ट्र के लिए इस दिवस को मनाने के पीछ मशहूर समाज सेवी जेमी इलियन के प्रयासों का नतीजा था. उन्हीं के विचारों ने संयुक्त राष्ट्र के महासचिव जनरल बान की मून को प्रेरित किया और अंततः 20 मार्च 2013 को इंटरनेशल डे ऑफ हैप्पीनेस घोषित किया गया.

संयुक्त राष्ट्र के लक्ष्यों में खुशी का स्थान

संयुक्त राष्ट्र ने साल 2015 में 17 संवहनीय विकास लक्ष्यों की घोषणा की थी जो गरीबी खत्म करने,  असमानता को कम करने और हमारे ग्रह की रक्षा करने के लिए निर्धारित किए गए है.  ये तीन प्रमुख पहलू अच्छे जीवन और खुशी के लिए बहुत जरूरी माने गए हैं. संयुक्त राष्ट्र का यह भी प्रयास है कि इस दिवस को मनाते हुए दुनिया के नीति निर्धारकों और निर्माताओं का ध्यान खुशी जैसे अंतिम लक्ष्य पर बनाए रखा जाए.

संयुक्त राष्ट्र का यह भी मानना है कि दुनिया में संधारणीय विकास, गरीबी उन्मूलन, और खुशी के लिए आर्थिक विकास में समानता, समावेशता और संतुलन का नजरिया शामिल करने की जरूरत है. खुशी को महत्व देने की औपचारिक पहल भूटान जैसे छोटे से देश ने की थी जो 1970 के दशक से अपने राष्ट्रीय आय से ज्यादा राष्ट्रीय खुसी के मूल्य को ज्यादा महत्व देता आ रहा है. यहां तब से ही राष्ट्रीय सकल उत्पाद की जगह राष्ट्रीय सकल आनंद को अधिक महत्व दिया जा रहा है.

क्या है साल 2021 की थीम

संयुक्त राष्ट्र के हर दिवस के लिए हर साल एक नई थीम जारी की जाती है जिसके दायरे में ही वह दिवस मनाया जाता है यानि उसी थीम पर फोकस कर उस दिवस को मनाया जाता है. इस साल कोविड-19 का प्रभाव जारी है जो पिछले साल बहुत अधिक दिखा था. कोविड महामारी को ध्यान में रखते हुए इस साल की थीम है. शांत रहें, बुद्धिमान रहें और दयालु रहें.

क्यों रखी गई है ये थीम 

इस थीम को रखने के पीछे का उद्देश्य कोविड महामारी के बीच उपजी निराशा के बीच खुशी खोजने के लिए खुद को प्रेरित करना है. शांत रहने को जब हम लक्ष्य बनाते हैं तो हम खुद को याद दिलाएं कि सबकुछ हमारे नियंत्रण में नहीं है. इसके बाद बुद्धिमत्तापूर्ण चुनाव सभी के लिए मददगार होंगे और हमें सकारात्मक बनाए रखेंगे. इसके साथ ही में एक दूसरे के प्रति दया भाव कायम रखना होगा.कोरोना काल में इसकी हमें सबसे ज्यादा जरूरत है.




3/16/2021

National Vaccination Day 2021: What is National Vaccination Day

National Vaccination Day 2021: What is National Vaccination Day

National Vaccination Day 2021, National Immunization Day 2021India started observing National Vaccination Day in 1995

National Vaccination Day: Also called the National Immunization Day, is celebrated every year on March 16 to convey the importance of vaccination to the entire nation

What is National Vaccination Day

The National Vaccination Day, also called the National Immunization Day, is celebrated every year on March 16 to convey the importance of vaccination to the entire nation. The day was first observed in the year 1995, the year on which India started Pulse Polio Programme. This year, the National Vaccination Day is important as the country has started its biggest Covid-19 immunization programme early this year and has already crossed the 30 million mark.

What is Immunization

According to the World Health Organization, immunization is a ‘health and development success story. It is the process through which an individual’s immune system becomes fortified against foreign harm causing agent.

The vaccines train a person’s immune system to create antibodies. The vaccines are killed or weakened form of germs like viruses or bacteria that cannot cause disease but make antibodies that will safeguard the body when an active and strong form of the disease attacks the body.

What is the purpose of the National Vaccination Day?

The National Vaccination day started with the aim of curbing Polio plaguing the world. The day was observed to better awareness about the disease and how it can be eradicated from the planet. About 172 million children are immunized during each National Immunization Day, said the website of the National Health Programme.

What is the Pulse Polio Programme

Under the Pulse Polio Programme, two drops of the oral vaccine were given to all children younger than five years of age. The programme worked effectively as India was declared Polio free by the World Health Organization in 2014. The last polio case in the country was reported from West Bengal on January 30th, 2011.

Since then, vaccine has become an important preventive mechanism for difficult diseases like Tetanus, TB, DPT, Measles, Rotavirus, Mumps, etc.

What are the National vaccination schemes adopted by government?

Universal Immunisation Programme

The Universal Immunization Programme was introduced in 1978  by the Ministry of Health and Family welfare.  In 1989, it. Was modified to cover all districts in every state in a phased manner. Vaccines that were provided under UIP are Bacillus Calmette-Guerin vaccine, Oral Polio Vaccine, Hepatitis B vaccine, Tetanus and adult diphtheria (Td) vaccine, DPT,  JE vaccine, PCV, Rotavirus vaccine, Pentavalent vaccine.

Mission Indradhanush

The health mission was launched by Union Health Minister J.P Nadda on December 25, 2014. The scheme seeks to drive towards 90 per cent full immunisation coverage of India and sustain the same by 2020. Vaccination is being provided against eight vaccine-preventable diseases nationally, i.e. Diphtheria, Tetanus, Whooping Cough, Polio, Measles, a severe form of Childhood Tuberculosis and Hepatitis B and meningitis & pneumonia caused by Haemophilus influenza type B; and against Rotavirus Diarrhea and Japanese Encephalitis in selected states and districts respectively.


3/13/2021

Biography of Sarojini Naidu


सरोजिनी नायडू


 ज न्म: 13 फरवरी 1879

मृत्यु: मार्च 2, 1949

उपलब्धियां: भारत कोकिला कहलाने वाली सरोजिनी नायडू भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की पहली महिला अध्यक्ष थीं। आजादी के बाद वो पहली महिला राज्यपाल भी घोषित हुईं।

सरोजिनी नायडू एक मशहूर कवयित्री, स्वतंत्रता सेनानी और अपने दौर की महान वक्ता भी थीं। उन्हें भारत कोकिला के नाम से भी जाना जाता था।

प्रारंभिक जीवन

सरोजिनी नायडू का जन्म 13 फरवरी 1879 में हुआ था। उनके पिता अघोरनाथ चट्टोपध्याय एक वैज्ञानिक और शिक्षाशास्त्री थे। उन्होंने हैदराबाद के निज़ाम कॉलेज की स्थापना की थी। उनकी मां वरदा सुंदरी कवयित्री थीं और बंगाली भाषा में कविताएं लिखती थीं। सरोजिनी आठ भाई-बहनों में सबसे बड़ी थीं। उनके एक भाई विरेंद्रनाथ क्रांतिकारी थे और एक भाई हरिद्रनाथ कवि, कथाकार और कलाकार थे। सरोजिनी नायडू होनहार छात्रा थीं और उर्दू, तेलगू, इंग्लिश, बांग्ला और फारसी भाषा में निपुण थीं। बारह साल की छोटी उम्र में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा पास कर ली थी। उन्होंने मद्रास प्रेसीडेंसी में पहला स्थान हासिल किया था। उनके पिता चाहते थे कि वो गणितज्ञ या वैज्ञानिक बनें परंतु उनकी रुचि कविता में थी। उनकी कविता से हैदराबाद के निज़ाम बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने सरोजिनी नायडू को विदेश में पढ़ने के लिए छात्रवृत्ति दी। 16 वर्ष की आयु में वो इंग्लैंड गयीं। वहां पहले उन्होंने किंग कॉलेज लंदन में दाखिला लिया उसके बाद कैम्ब्रिज के ग्रीतान कॉलेज से शिक्षा हासिल की। वहां वे उस दौर के प्रतिष्ठित कवि अर्थर साइमन और इडमंड गोसे से मिलीं। इडमंड ने सरोजिनी को भारतीय विषयों को ध्यान में रख कर लिखने की सलाह दी। उन्होंने नायडू को भारत के पर्वतों, नदियों, मंदिरों और सामाजिक परिवेश को अपनी कविता में समाहित करने की प्रेरणा दी।

कैरियर

उनके द्वारा संग्रहित ‘द गोल्डन थ्रेशहोल्ड’ (1905), ‘द बर्ड ऑफ़ टाइम’ (1912) और ‘द ब्रोकन विंग’ (1912) बहुत सारे भारतीयों और अंग्रेजी भाषा के पाठकों को पसंद आई। 15 साल की उम्र में वो डॉ गोविंदराजुलू नायडू से मिलीं और उनको उनसे प्रेम हो गया। डॉ गोविंदराजुलू गैर-ब्राह्मण थे और पेशे से एक डॉक्टर। अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद सरोजिनी ने 19 साल की उम्र में विवाह कर लिया। उन्होंने अंर्तजातीय विवाह किया था जो कि उस दौर में मान्य नहीं था। यह एक तरह से क्रन्तिकारी कदम था मगर उनके पिता ने उनका पूरा सहयोग किया था। उनका वैवाहिक जीवन सुखमय रहा और उनके चार बच्चे भी हुए – जयसूर्या, पदमज, रणधीर और लीलामणि। वर्ष 1905 में बंगाल विभाजन के दौरान वो भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में शामिल हुईं। इस आंदोलन के दौरान वो गोपाल कृष्ण गोखले, रवींद्रनाथ टैगोर, मोहम्मद अली जिन्ना, एनी बेसेंट, सीपी रामा स्वामी अय्यर, गांधीजी और जवाहर लाल नेहरू से मिलीं। भारत में महिला सशक्तिकरण और महिला अधिकार के लिए भी उन्होंने आवाज उठायी। उन्होंने राज्य स्तर से लेकर छोटे शहरों तक हर जगह महिलाओं को जागरूक किया। वर्ष 1925 में वो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष चुनी गयीं। सविनय अवज्ञा आंदोलन में वो गांधी जी के साथ जेल भी गयीं। वर्ष 1942 के  ̔भारत छोड़ो आंदोलन ̕  में भी उन्हें 21 महीने के लिए जेल जाना पड़ा। उनका गांधीजी से मधुर संबंध था और वो उनको मिकी माउस कहकर पुकारती थीं। स्वतंत्रता के बाद सरोजिनी भारत की पहली महिला राज्यपाल बनीं। उत्तर प्रदेश का राज्यपाल घोषित होने के बाद वो लखनऊ में बस गयीं। उनकी मृत्यु 2 मार्च 1949 को दिल का दौरा पड़ने से लखनऊ में हुई।

3/08/2021

Celebration of International Women's Day 2021



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International Women's Day (IWD) is celebrated on 8 March around the world. It is a focal point in the movement for women's rights. After the Socialist Party of America organized a Women's Day in New York City on February 28, 1909, German delegates Clara ZetkinKäte DunckerPaula Thiede and others proposed at the 1910 International Socialist Woman's Conference that "a special Women's Day" be organized annually. After women gained suffrage in Soviet Russia in 1917, March 8 became a national holiday there. The day was then predominantly celebrated by the socialist movement and communist countries until it was adopted by the feminist movement in about 1967. The United Nations began celebrating the day in 1977.

Commemoration of International Women's Day today ranges from being a public holiday in some countries to being largely ignored elsewhere. In some places, it is a day of protest; in others, it is a day that celebrates womanhood.


History

Women's demonstration for bread and peace – March 8, 1917, Petrograd, Russia
Clara Zetkin and Rosa Luxemburg in January 1910
Soviet postage stamps
British poster for Women's Day March 1974
Poster for Women's Day March in London, 1975

The earliest Women's Day observance, called "National Woman's Day",was held on February 28, 1909, in New York City, organized by the Socialist Party of America at the suggestion of activist Theresa Malkiel. There have been claims that the day was commemorating a protest by women garment workers in New York on March 8, 1857, but researchers Kandel and Picq have described this as a myth created to "detach International Women's Day from its Soviet history in order to give it a more international origin".

In August 1910, an International Socialist Women's Conference was organized to precede the general meeting of the Socialist Second International in CopenhagenDenmark. Inspired in part by the American socialists, German delegates Clara ZetkinKäte DunckerPaula Thiede and others proposed the establishment of an annual "Women's Day", although no date was specified at that conference. Delegates (100 women from 17 countries) agreed with the idea as a strategy to promote equal rights including suffrage for women.

The following year on March 19, 1911, International Women's Day (IWD) was marked for the first time, by over a million people in Austria, Denmark, Germany and Switzerland. In the Austro-Hungarian Empire alone, there were 300 demonstrations. In Vienna, women paraded on the Ringstrasse and carried banners honoring the martyrs of the Paris Commune. Women demanded that they be given the right to vote and to hold public office. They also protested against employment sex discrimination.

The Americans continued to celebrate National Women's Day on the last Sunday in February.

Female members of the Australian Builders Labourers Federation march on International Women's Day 1975 in Sydney.

In 1913 Russian women observed their first International Women's Day on the last Saturday in February (by the Julian calendar then used in Russia).

In 1914, International Women's Day was held on March 8 in Germany, possibly because that day was a Sunday, and now it is always held on March 8 in all countries. The 1914 observance of the Day in Germany was dedicated to women's right to vote, which German women did not win until 1918.

In London, there was a march from Bow to Trafalgar Square in support of women's suffrage on March 8, 1914. Activist Sylvia Pankhurst was arrested in front of Charing Cross station on her way to speak in Trafalgar Square.

On March 8, 1917, on the Gregorian calendar, in the capital of the Russian EmpirePetrograd, women textile workers began a demonstration, covering the whole city. This marked the beginning of the February Revolution, which alongside the October Revolution made up the Russian Revolution. Women in Saint Petersburg went on strike that day for "Bread and Peace"– demanding the end of World War I, an end to Russian food shortages, and the end of czarism. Revolutionary leader Leon Trotsky wrote, "23 February (8th March) was International Woman's Day and meetings and actions were foreseen. But we did not imagine that this 'Women's Day' would inaugurate the revolution. Revolutionary actions were foreseen but without a date. But in the morning, despite the orders to the contrary, textile workers left their work in several factories and sent delegates to ask for the support of the strike… which led to mass strike... all went out into the streets." Seven days later, Tsar Nicholas II abdicated, and the provisional Government granted women the right to vote.

Following the October Revolution, the Bolshevik Alexandra Kollontai and Vladimir Lenin made it an official holiday in the Soviet Union, but it was a working day until 1965. On May 8, 1965, by the decree of the USSR Presidium of the Supreme Soviet International Women's Day was declared a non-working day in the USSR "in commemoration of the outstanding merits of Soviet women in communistic construction, in the defense of their Fatherland during the Great Patriotic War, in their heroism and selflessness at the front and in the rear, and also marking the great contribution of women to strengthening friendship between peoples, and the struggle for peace. But still, women's day must be celebrated as are other holidays."

After its official adoption in Soviet Russia following the Revolution in 1917, the holiday was predominantly celebrated in communist countries and by the communist movement worldwide. Communist leader Dolores Ibárruri led a women's march in Madrid in 1936 on the eve of the Spanish Civil War.

It was commemorated by the communists in China from 1922. In 1927, in the Chinese city of Guangzhou, there was a march of 25,000 women and male supporters, including representatives of the Kuomintang, the YWCA, and labor organizations. After the founding of the People's Republic of China on October 1, 1949, the State Council proclaimed on December 23 that March 8 would be made an official holiday with women in China given a half-day off.

The day remained predominantly a communist holiday until about 1967 when it was taken up by second-wave feminists. The day re-emerged as a day of activism, and is sometimes known in Europe as the "Women's International Day of Struggle". In the 1970s and 1980s, women's groups were joined by leftists and labor organizations in calling for equal pay, equal economic opportunity, equal legal rights, reproductive rights, subsidized child care, and the prevention of violence against women.

The United Nations began celebrating International Women's Day in the International Women's Year, 1975. In 1977, the United Nations General Assembly invited member states to proclaim March 8 as the UN Day for women's rights and world peace.

International Women's Day sparked violence in Tehran, Iran on March 4, 2007, when police beat hundreds of men and women who were planning a rally. (A previous rally for the occasion was held in Tehran in 2003.) Police arrested dozens of women and some were released after several days of solitary confinement and interrogation. Shadi SadrMahbubeh Abbasgholizadeh and several more community activists were released on March 19, 2007, ending a fifteen-day hunger strike.

In the twenty–first century, in the West, the day was increasingly sponsored by major corporations and used to promote feel–good messages, rather than radical social reforms. In 2009, the British marketing firm, Aurora Ventures, set up a "International Women's Day" website with corporate sponsorship. The website began to promote hashtags as themes for the day, which became used internationally. The day was commemorated by business breakfasts and social media communications that were reminiscent of Mother's Day greetings.

 

3/07/2021

INTERNATIONAL WOMEN'S DAY 2021 campaign theme: #ChooseToChallenge

 


IWD 2021 campaign theme: #ChooseToChallenge

    A challenged world is an alert world and from challenge comes change.

So let's all choose to challenge.

How will you help forge a gender equal world?
Celebrate women's achievement. Raise awareness against bias. Take action for equality.

 


So, hand up high to show you're in


IWD - Nigeria - Boluwa Olojo

Will you #ChooseToChallenge?
 


Show your support and solidarity


Raise your hand high to show you're in and that you commit to choose to challenge and call out inequality.

Nigeria IWD theme

Strike the Choose To Challenge pose and share in your class groups 
 


Send in your #ChooseToChallenge images

International Women's Day 2021

Individuals and organizations are invited to send in their #ChooseToChallenge images as we share images from around the world in the lead up to International Women's Day 2021.

So strike the #ChooseToChallenge pose with your hand high to show your commitment to choose to challenge inequality, call out bias, question stereotypes, and help forge an inclusive world.

Submissions are photographs of individual or group compositions striking the #ChooseToChallenge hand up pose to potentially be shared in Your class groups.

Please submit #ChooseToChallenge images as early as possible.


3/05/2021

Pariksha pe Charcha 2021

 

Pariksha pe Charcha 2021

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