डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन जीवन परिचय
जीवन परिचय बिंदु | राधाकृष्णन जीवन परिचय |
पूरा नाम | डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन |
धर्म | हिन्दू |
जन्म | 5 सितम्बर 1888 |
जन्म स्थान | तिरुमनी गाँव, मद्रास |
माता-पिता | सिताम्मा, सर्वपल्ली विरास्वामी |
विवाह | सिवाकमु (1904) |
बच्चे | 5 बेटी, 1 बेटा |
डॉ राधाकृष्णन का जन्म 5 सितम्बर 1888 को तमिलनाडु के छोटे से गांव तिरुमनी में ब्राह्मण परिवार में हुआ था. इनके पिता का नाम सर्वपल्ली विरास्वामी था, वे गरीब जरुर थे किंतु विद्वान ब्राम्हण भी थे. इनके पिता के ऊपर पुरे परिवार की जिम्मदारी थी, इस कारण राधाकृष्णन को बचपन से ही ज्यादा सुख सुविधा नहीं मिली. राधाकृष्णन ने 16 साल की उम्र में अपनी दूर की चचेरी बहन सिवाकमु से शादी कर ली. जिनसे उन्हें 5 बेटी व 1 बेटा हुआ. इनके बेटे का नाम सर्वपल्ली गोपाल है, जो भारत के महान इतिहासकारक थे. राधाकृष्णन जी की पत्नी की मौत 1956 में हो गई थी. भारतीय क्रिकेट टीम के महान खिलाड़ी वीवी एस लक्ष्मण इन्हीं के खानदान से ताल्लुक रखते है.
डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी की शिक्षा
डॉ राधाकृष्णन का बचपन तिरुमनी गांव में ही व्यतीत हुआ. वहीं से इन्होंने अपनी शिक्षा की प्रारंभ की. आगे की शिक्षा के लिए इनके पिता जी ने क्रिश्चियन मिशनरी संस्था लुथर्न मिशन स्कूल, तिरुपति में दाखिला करा दिया. जहां वे 1896 से 1900 तक रहे. सन 1900 में डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने वेल्लूर के कॉलेज से शिक्षा ग्रहण की. तत्पश्चात मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज, मद्रास से अपनी आगे की शिक्षा पूरी की. वह शुरू से ही एक मेंधावी छात्र थे. इन्होंने 1906 में दर्शन शास्त्र में M.A किया था. राधाकृष्णन जी को अपने पुरे जीवन शिक्षा के क्षेत्र में स्कालरशिप मिलती रही.
डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के करियर की शुरुवात –
1909 में राधाकृष्णन जी को मद्रास प्रेसीडेंसी कॉलेज में दर्शनशास्त्र का अध्यापक बना दिया गया| सन 1916 में मद्रास रजिडेसी कालेज में ये दर्शन शास्त्र के सहायक प्राध्यापक बने. 1918 मैसूर यूनिवर्सिटी के द्वारा उन्हें दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर के रूप में चुना गया| तत्पश्चात वे इंग्लैंड के oxford university में भारतीय दर्शन शास्त्र के शिक्षक बन गए. शिक्षा को डॉ राधाकृष्णन पहला महत्व देते थे. यही कारण रहा कि वो इतने ज्ञानी विद्वान् रहे. शिक्षा के प्रति रुझान ने उन्हें एक मजबूत व्यक्तित्व प्रदान किया था. हमेशा कुछ नया सीखना पढने के लिए उतारू रहते थे. जिस कालेज से इन्होंने M.A किया था वही का इन्हें उपकुलपति बना दिया गया. किन्तु डॉ राधाकृष्णन ने एक वर्ष के अंदर ही इसे छोड़ कर बनारस विश्वविद्यालय में उपकुलपति बन गए. इसी दौरान वे दर्शनशास्त्र पर बहुत सी पुस्तकें भी लिखा करते थे|
डॉ.राधाकृष्णन को मिले सम्मान व अवार्ड
- शिक्षा और राजनीति में उत्कृष्ट योगदान देने के लिए डॉ. राधाकृष्णन को सन 1954 में सर्वोच्च अलंकरण “भारत रत्न” से सम्मानित किया गया.
- 1962 से राधाकृष्णन जी के सम्मान में उनके जन्म दिवस 5 सितम्बर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की गई|
- सन 1962 में डॉ. राधाकृष्णन को “ब्रिटिश एकेडमी” का सदस्य बनाया गया.
- पोप जॉन पाल ने इनको “गोल्डन स्पर” भेट किया.
- इंग्लैंड सरकार द्वारा इनको “आर्डर ऑफ़ मेंरिट” का सम्मान प्राप्त हुआ.
डॉ. राधाकृष्णन ने भारतीय दर्शन शास्त्र एवं धर्म के उपर अनेक किताबे लिखी जैसे “गौतम बुद्धा: जीवन और दर्शन” , “धर्म और समाज”, “भारत और विश्व” आदि. वे अक्सर किताबे अंग्रेज़ी में लिखते थे.
1967 के गणतंत्र दिवस पर डॉ राधाकृष्णन ने देश को सम्बोधित करते हुए यह स्पष्ट किया था, कि वह अब किसी भी सत्र के लिए राष्ट्रपति नहीं बनना चाहेंगे और बतौर राष्ट्रपति ये उनका आखिरी भाषण रहा.
डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन की मृत्यु
17 अप्रैल 1975 को एक लम्बी बीमारी के बाद डॉ राधाकृष्णन का निधन हो गया. शिक्षा के क्षेत्र में उनका योगदान हमेंशा याद किया जाता है. इसलिए 5 सितंबर को शिक्षक दिवस मनाकर डॉ.राधाकृष्णन के प्रति सम्मान व्यक्त किया जाता है. इस दिन देश के विख्यात और उत्कृष्ट शिक्षकों को उनके योगदान के लिए पुरुस्कार प्रदान किए जाते हैं. राधाकृष्णन को मरणोपरांत 1975 में अमेंरिकी सरकार द्वारा टेम्पलटन पुरस्कार से सम्मानित किया गया, जो कि धर्म के क्षेत्र में उत्थान के लिए प्रदान किया जाता है. इस पुरस्कार को ग्रहण करने वाले यह प्रथम गैर-ईसाई सम्प्रदाय के व्यक्ति थे.
डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के अनमोल वचन
डॉ राधाकृष्णन ने अपने जीवन के 40 वर्ष एक शिक्षक बन कर रहे. शिक्षा के क्षेत्र में और एक आदर्श शिक्षक के रूप में डॉ राधाकृष्णन को हमेंशा याद किया जाएगा.
1- राधाकृष्णन अपने छात्रों के बीच बहुत लोकप्रिय थे। जब वह मैसूर यूनिवर्सिटी छोड़कर कलकत्ता यूनिवर्सिटी में पढ़ाने के लिए जाने लगे तो उनके छात्रों ने उनके लिए फूलों से सजी एक बग्धी का प्रबंध किया और उसे खुद खींचकर रेलवे स्टेशन तक ले गए।