छठ पूजा 2020
हिन्दुओं के प्रसिद्ध त्योहारों में से एक छठ वर्ष में दो बार मनाया जाता है- पहली बार चैती छठ और दूसरी बार कार्तिकी छठ. चैती छठ पूजा चैत्र शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाया जाता है और वहीं कार्तिकी छठ पूजा कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाया जाता है. इस पूजा में छठ माता की अराधना और सूर्य को अर्घ देने का विशेष महत्व है. बिहार, झारखण्ड और उत्तर प्रदेश के अलावा देश के अन्य हिस्सों के साथ इसे नेपाल, मॉरीशस एवं अन्य देशों में भी उत्साह पूर्वक मनाया जाता है.छठ चार दिनों तक चलने वाला त्योहार है। इसकी शुरुआत नहाय-खाय से होती है. इस दिन गंगा के पवित्र जल से स्नान कर के खाना बनाया जाता है. इस दिन चने की दाल, लौकी की सब्जी और रोटी का सेवन किया जाता है. नहाय-खाय के बाद खाने में नमक का प्रयोग नहीं किया जाता है. दूसरे दिन को खरना के नाम से जाना जाता है. खरना के दिन व्रत करने वाले लोग प्रसाद बनाते हैं. खरना के प्रसाद में खीर बनाई जाती है. इस खीर में चीनी की जगह गुड़ का प्रयोग किया जाता है. शाम को पूजा के बाद इस प्रसाद को ग्रहण करते हैं. प्रसाद खाने के बाद निर्जला व्रत शुरू होता है. तीसरे दिन नदी किनारे छठ माता की पूजा की जाती है. पूजा के बाद डूबते हुए सूर्य को गाय के दूध और जल से अर्घ दिया जाता है. इसके साथ ही छठ का विशेष प्रसाद ठेकुआ और फल चढ़ाया जाता है. इस त्योहार के आखिरी दिन सूर्य के उगते ही सभी के चेहरे खिल उठते हैं. व्रत करने वाले पुरुष और महिलाओं के द्वारा उगते हुए सूर्य को अर्घ दिया जाता है. सूर्य को अर्घ देने के बाद व्रत करने वाले लोग प्रसाद खा कर अपना व्रत खोलते हैं. इसके बाद सभी लोगों में प्रसाद बांट कर पूजा संपन्न की जाती है. छठ का व्रत किसी कठिन तपस्या से कम नहीं है. छठ पर्व पति और संतान की दीर्घायु के लिए किया जता है. मान्यताओं के अनुसार सच्चे मन से छठ व्रत करने पर सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. ऐसी मान्यता है की छठ पर्व पर व्रत रखने वाली महिलाओं को पुत्र की प्राप्ति होती है. महिलाओं के साथ पुरुष भी अपने कार्य की सफलता और मनचाहे फल की प्राप्ति के लिए इस व्रत को पूरी निष्ठा और श्रद्धा से करते हैं.
एक मान्यता के अनुसार छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी. सूर्य पुत्र कर्ण घंटों पानी में खड़े हो कर सूर्य को अर्घ देते थे. कुछ कथाओं के अनुसार अपने प्रियजनों की लम्बी उम्र की कामना के लिए द्रौपदी भी नियनित सूर्य की अराधना करती थी. कुछ लोगों का यह भी मानना है कि लंका विजय के बाद भगवान राम और माता सीता ने रामराज्य की स्थापना के लिए कार्तिक माह में शुल्क पक्ष की षष्ठी को सूर्य की पूजा की. पुराणों के अनुसार राजा प्रियवद ने पुत्र की प्राप्ति के लिए छठ का व्रत किया था.
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