10/31/2020

31 अक्तूबर- राष्ट्रीय एकता दिवस

 

31 अक्तूबर- राष्ट्रीय एकता दिवस

भारत के राजनीतिक एकीकरण के लिए सरदार वल्लभ भाई पटेल के योगदान को चिरस्थाई बनाए रखने के लिए उनके जन्मतिथि 31 अक्तूबर को राष्ट्रीय एकता दिवस में मनाया जाता है। इसका आरम्भ प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने सन 2014 में किया था। सरदार वल्लभ भाई पटेल एक स्वतंत्रता सेनानी थे उन्होंने देश के लिए कई योगदान दिए हैं । सरदार पटेल द्वारा ही 562 रियासतों का एकीकरण विश्व इतिहास का एक आश्चर्य था क्योंकि भारत की यह रक्तहीन क्रांति थी। इसी एकीकरण के लिए उन्हें लोह पुरुष की उपाधि मिली थी|

राष्ट्रीय एकता दिवस की शुरुआत केंद्र सरकार द्वारा 2014 में दिल्ली में की गयी थी, जिसका उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी द्वारा किया गया था। किसी भी देश की ताकत सभी भारतीय आपस उस देश की एकता में निहित होती है और यदि देश बड़ा और विभिन्न धर्म, भाषा के लोग रहने वाले हो तो उन्हें एकता की डोर में बाधकर रखना मुश्किल होता है लेकिन हमारे देश भारत की सबसे बड़ी यही खूबसूरती है की इतने धर्म, संप्रदाय, जाति के बावजूद आपस में मिलजुलकर रहते है और देश के एकता को बनाये रखे हुए है।

भारत को आजादी मिलने के पश्चात हमारे देश में 500 से अधिक देशी रियासते थी जो की सबको आपस में मिलकर एक देश का गठन करना बहुत ही मुश्किल था, सभी रियासते अपनी सुविधानुसार अपना शासन चाहते थे लेकिन लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल के सुझबुझ और इन रियासतों के प्रति अपनी स्पष्ट नीति के चलते इन्हें भारत देश में एकीकरण किया गया और इस प्रकार 3 देशी रियासते जूनागढ़, कश्मीर और हैदराबाद भारत में मिलने से मना कर दी जिसके पश्चात भारी विरोध के बाद जूनागढ़ का नवाब हिंदुस्तान छोडकर भाग गया, जिसके पश्चात जूनागढ़ भारत में मिल गया और कश्मीर के राजा हरीसिंह ने अपनी राज्य की सुरक्षा को आश्वासन लेकर कश्मीर को भी भारत में मिला दिया।

अंत में हैदराबाद के निजाम ने जब भारत में मिलने से मना किया तो लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल ने तुरंत वहा सेना भेजकर निजाम को भी आत्मसमर्पण के लिए मजबूर कर दिया जिसके पश्चात हमारे भारत देश का नवनिर्मित गठन हुआ जिसे संघ राज्यों का देश भी कहा जाता है और इस प्रकार अनेक होते हुए भी एक भारत का निर्माण हुआ। कोई भी देश तभी तक सुरक्षित रहता है जबतक की उस देश की जनता और शासन में आपसी एकता और अखंडता निहित होती है।

हमारे देश की इसी आपसी एकता की कमी का फायदा उठाते हुए अंग्रेजो ने भारत में फूट डालो और राज करो की नीति पर हमारे देश में 200 से अधिक वर्षो तक राज किया। हमारी इस गुलामी के कई कारण थे जैसे भारत के सभी राज्यों, रियासतों में आपसी कोई तालमेल नही था सभी रियासतों के राजा सिर्फ अपनी अपनी देखते थे। अगर कोई बाहरी शत्रु आक्रमण करे तो कोई भी एक दुसरे का साथ नही देने आता था यही अनेक कारण थे जिसके कारण हमारा देश इसी एकता के अभाव में विकास के राह से भटक गया और जो भी आया सिर्फ यहाँ लुटा और चला गया।

अब हमारा देश आजाद है इसका मतलब यह नही है की हमारे देश पर कोई बुरी नजर नहीं डाल सकता है। हम सभी को अपने देश अंदर उन आसामाजिक तत्वों से खुद को बचा के रखना है जो हमे आपस में बाटने को कोशिश करते है और साथ में देश के बाहरी दुश्मनों से भी चौक्कना रहना है। तभी हमार भारत एक अखंड भारत बन सकेगा । ऐसे में अब हमे अपनी आजादी मिलने के बाद हम सबकी यही जिम्मेदारी बनती है की जब भी देश की एकता की बात आये तो सभी भारतीयों को अपने धर्म जाति से उठकर सोचने की आवश्यकता है। एक सच्चे भारतीय की तरफ कंधे से कंधा मिलाकर देश की अखंडता निभाना ही सच्ची राष्ट्रीय भकित है।

क्या है स्टैच्यू ऑफ यूनिटी

गुजरात के वडोदरा के पास नर्मदा ज़िले में स्थित सरदार सरोवर बांध से 3.5 किमी. नीचे की तरफ, राजपिपाला के निकट साधुबेट नामक नदी द्वीप पर 182 मीटर ऊँची सरदार वल्लभभाई पटेल की प्रतिमा लगाई गई।

मुख्य बिंदु

मात्र 33 महीनों में तैयार हुई यह प्रतिमा, चीन के केंद्रीय हेनान प्रांत में स्थित स्प्रिंग टेंपल की 11 सालों में निर्मित 153 मीटर ऊँची प्रतिमा (अब तक विश्व की सबसे ऊँची प्रतिमा का दर्जा प्राप्त था) से भी ऊँची है और न्यूयॉर्क की स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी (93 मी.) की ऊँचाई से करीब दोगुनी है।

प्रतिमा के निर्माण के लिये भारत भर के किसानों से ‘लोहा कैंपेन’ के तहत, आवश्यक लोहे को इकट्ठा किया गया था।

इस मूर्ति का डिज़ाइन पद्मभूषण पुरस्कार से सम्मानित मूर्तिकार ‘राम वनजी सुतर’ ने तैयार किया था।

प्रतिमा का निर्माण भारत की लार्सन एवं टूब्रो कंपनी तथा राज्य संचालित सरदार सरोवर नर्मदा निगम लिमिटेड द्वारा किया गया।

इसके निर्माण के लिये गुजरात सरकार ने सरदार वल्लभभाई पटेल राष्ट्रीय एकता ट्रस्ट (SVPRET) का गठन किया था।

स्टैच्यू की विशेषता

इस स्टैच्यू में लिफ्ट की व्यवस्था की गई है जिससे पर्यटक प्रतिमा के हृदय स्थल तक जा सकेंगे। यहाँ एक गैलरी बनी हुई है जहाँ एक साथ 200 पर्यटक खड़े होकर सतपुड़ा और ​विंध्यांचल पहाड़ियों से घिरे नर्मदा नदी, सरदार सरोवर बांध और वहाँ स्थित फूलों की घाटी का नजारा भी देख सकेंगे।

स्टैच्यू ऑफ यूनिटी से 3 किमी. की दूरी पर टेंट सिटी, फूलों की घाटी और श्रेष्ठ भारत भवन नामक एक कन्वेंशन सेंटर का भी निर्माण किया गया है।

यह स्टैच्यू 180 किमी. प्रति घंटे की रफ्तार से चलने वाली हवा में भी स्थिर खड़ा रहेगा और 6.5 तीव्रता के भूकंप को सहने में सक्षम होगा।

इस प्रतिमा के अंदर सरदार पटेल का म्यूजियम भी तैयार किया गया है जिसमें सरदार पटेल की स्मृति से जुड़ी कई चीज़ें रखी जाएंगी। 

सरदार वल्लभभाई पटेल का परिचय

सरदार वल्लभभाई पटेल का जन्म 31 अक्तूबर, 1875 को गुजरात के नाडियाड में हुआ था। वह अपने पिता झवेरभाई पटेल एवं माता लाड़बाई की चौथी संतान थे।
 
उनका शुरूआती जीवन काफी कठिन था। वह एक किसान परिवार से थे और खेतों में पिता का हाथ बंटाते थे। इसी वजह से 22 साल की उम्र में वह 10वीं की परीक्षा पास कर पाए। कॉलेज की पढ़ाई भी उन्हें घर पर ही करनी पड़ी और अधिकांश ज्ञान स्वाध्याय से ही अर्जित किया। वह जिला अधिवक्ता की परीक्षा में उत्तीर्ण हुए जिससे उन्हें वकालत करने की अनुमति मिली।

1909 में जब उनकी पत्नी का निधन हुआ उस दौरान वह कोर्ट में बहस कर रहे थे। इसी समय किसी ने कागज के टुकड़े पर लिखकर उन्हें यह दुखद खबर दी। उन्होंने इसे पढ़कर जेब में रख लिया। कार्रवाई खत्म होने के बाद इस बारे में उन्होंने सबको बताया और रवाना हुए।

36 साल की उम्र में वह वकालत पढऩे इंगलैंड गए थे और उन्होंने 36 महीने का कोर्स केवल 30 महीने में पूरा कर लिया था।

जब 1930 के दशक में गुजरात में प्लेग फैला तो पटेल लोगों की सलाह को दरकिनार करते हुए अपने पीड़ित मित्र की देखभाल के लिए पहुंच गए। परिणामस्वरूप उन्हें भी इस बीमारी ने जकड़ लिया। जब तक वह ठीक नहीं हो गए वह एक पुराने मंदिर में अकेले रहे।

गांधी जी के साथ देश के स्वतंत्रता आंदोलन में उन्होंने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया था।

देश आजाद हुआ तो वह कई छोटी-छोटी रियासतों में बंटा हुआ था जिनको एक साथ लाने का श्रेय सरदार पटेल को ही दिया जाता है। सरदार वल्लभ भाई पटेल ने आजादी के ठीक पूर्व कई राज्यों को भारत में मिलाने के लिए कार्य करना शुरू कर दिया था इसलिए उन्हें भारत के राजनीतिक एकीकरण के पिता के रूप में भी जाना जाता है।

उन्हें महात्मा गांधी से बड़ा लगाव था। गांधी जी की हत्या की खबर सुनकर उन्हें सदमा लगा और वह बीमार रहने लगे। इसके बाद हार्ट अटैक से 15 दिसम्बर, 1950 को उनका निधन हो गया। उन्हें मरणोपरांत वर्ष 1991 में भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न दिया गया।


2 comments:

  1. I have taken the pledge for unity of India

    ReplyDelete
  2. I have taken the pledge for unity of India.
    FALAK KABIR

    ReplyDelete

Most Viewed